तसवीरें
१९१४ की दुनिया आज की दुनिया से बेहद अलग दिखती थी। ब्रिटिश राज की प्रजा के लिए एक दूसरे को देखने का इक माध्यम थी मीडिया की नज़र। समूहों और व्यक्तियों के स्तर पर, १०० साल पहले कनेडियन अखबारों में जिन तरीकों के साथ ग़ैर-यूरोपीय लोगों को दर्शाया जाता था,
यह तरीके ब्रिटिश साम्राज्य में चल-बदल रहे संवाद की झलक पेश करते हैं। दृष्टिकोणों और तालमेल में आये बदलाव, इक राष्ट्र की आखों देखी संस्कृति की ओर ध्यान मोड़कर दिखाते हैं कि आकार ले रही संस्कृति को भेदा जा सकता है - जिससे "हमारे"
और "उनके" को अर्थ मिलते हैं। यहाँ सूचीबद्ध की गयी चीज़ों में शामिल हैं एतिहासिक तसवीरें और अखबारों में छपे राजनितिक कार्टून। तस्वीरों को जिस तरह बनाया गया है महज़ उसी तरह देखा जा सकता है लेकिन शायद तस्वीरों के पीछे गहरी कहानियाँ
छुपी हुई हैं। यह तसवीरें किसके नज़रिए से हैं?
यह किन के लिए बनायी गयी हैं? क्या कार्टूनों और तस्वीरों के बीच समानताएं हैं? यह ऐसे कुछ सवाल हैं जो उठाये जाते हैं जब इतिहास को आखों से देखा-समझा जाता है।
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